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पुण्यपुरुष २४७ लोग अपने स्वजनों से मिलने-जुलने चले गये । हमने इसमें कोई हानि नहीं समझी। ___"किन्तु रात्रि को अचानक डाकुओं के एक बड़े सशस्त्र दल ने हम पर आक्रमण कर दिया। वे, आपके दामाद तो अपने प्राण बचाकर न जाने किधर निकल गये, किन्तु में उन दुष्ट डाकुओं हाथ में पड़ गई। वे डाक मुझे नेपाल ले गये और वहाँ किसी व्यक्ति के हाथ वेच दिया। वह व्यक्ति मुझे बब्बरकुल लाया और वहाँ पर उसने मुझे एक वेश्या के हाथ बेच दिया जो नाचने-गाने का धंधा करती
थी।
__पिताजी ! मेरी करुण-कथा यहाँ से और भी करुण हो गई। मुझे अपनी इच्छा के विरुद्ध नाचना-गाना सीखना पड़ा और मैं नटी बन गई। वहाँ के राजा महाकाल नाटकों के बड़े शौकीन हैं। मुझे उनकी नाट्य-मण्डली में प्रविष्ट होना पड़ा। और अन्त में जब श्रीपाल महाराज वहाँ पहुँचे तथा राजकुमारी मदनसेना के साथ इन्होंने विवाह किया, तब राजा महाकाल ने एक नाटक-मंडली भी इन्हें उपहार में दी। तभी से मैं इन्हीं के साथ हूँ। किन्तु मैंने अब तक किसी पर यह प्रकट नहीं होने दिया था कि मैं कौन हूँ। स्वयं को राजकुमारी कहकर प्रकट करने पर मुझे जिस लज्जा का अनुभव करना पड़ता उसे मैं सहन नहीं कर सकती थी।
"किन्तु पिताजी ! आज आप लोगों को देखकर, अपने ही
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