________________
२४६
पुण्यपुरुष
उन्होंने तुरन्त नाटक स्थगित किये जाने तथा समस्त उपस्थित समुदाय को क्षमायाचना सहित अपने-अपने घर जाने का आदेश दिया।
जब एकान्त हुआ तब उन्होंने सुरसुन्दरी को आश्वस्त करते हुए कहा--
"तुम्हें जो कुछ भी दुख सहने पड़े हों, अब उनका अन्त आ गया है। जिस किसी भी कारण से तुम्हें जहाँजहाँ भी भटकना पड़ा हो, वह भटकन अब समाप्त हो गई है। तुम अपने माता-पिता की गोद में पहुँच गई हो। अब तुम प्रत्येक दृष्टि से सुरक्षित हो। अत: अब तुम अपने मन को शान्त करो, अपने अतीत के कष्टों को भूल जाओ और प्रसन्न हो जाओ।"
श्रीपाल महाराज द्वारा इतना कह दिये जाने पर राजा प्रजापाल भी कुछ संयत और स्थिर हुए। उन्होंने सुरसुन्दरी के सिर पर स्नेहपूर्वक हाथ फेरते हुए पूछा___ "बेटी ! तेरी यह स्थिति कैसे हुई ? तुझे तो मैंने बड़े समारोहपूर्वक राजा अरिदमन के साथ ब्याहा था?"
सुरसुन्दरी की सिसकियाँ अब थम गई थीं। उसने अपनी करुण कथा इस प्रकार सुनाई- "हम लोग विवाह के पश्चात् सकुशल शंखपुर पहुँच गये थे। किन्तु उस दिन शुभ मुहूर्त न मिलने के कारण नगर-प्रवेश न कर सके। हम लोगों के साथ के बहुत से
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org