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पुण्यपुरुष
_ "अरे! अरे!! तुम यहाँ ऐसे क्यों बैठी हो ? मंच पर तुम्हारी प्रतीक्षा हो रही है। रंग में भंग हो रहा है। उठोउठो, जल्दी चलो........." ___"नहीं, आज मैं अभिनय नहीं कर सकूँगी।"-उस नटी ने उत्तर दिया । उसका स्वर भर्राया हुआ था।
"अभिनय नहीं करोगी? अरे भाग्यवान ! यह तुम क्या कह रही हो? ऐसा भी क्या संभव है ? नाटक चल रहा है । तुम्हारा प्रसंग है, और तुम कहती हो कि अभिनय नहीं करोगी। तो फिर अब क्या होगा ? महाराज श्रीपाल क्या कहेंगे? मेरी तो मौत ही आई समझो। किन्तु आखिर बात क्या है ? मैंने तुम्हें अपनी पुत्री के समान प्यार किया है, और तुम आज इस परीक्षा की घड़ी में मुझे धोखा दे रही हो? शुभे ! मेरी बात मान लो। इस समय तो मेरी रक्षा करो । समय अधिक नहीं है । चलो, उठो। फिर तुम्हें जो कहना हो वह नाटक समाप्त होने के बाद कह लेना। उठो बेटी !"
इतने प्रेम और आग्रहपूर्वक समझाने पर आखिर वह नटी प्रस्तुत हो गई और रंगमंच पर जा पहुंची। उसके सौन्दर्य की जगमगाहट से रंगस्थल झलक-झलक कर उठा।
घोर विषाद की मुद्रा में वह मंच पर आगे बढ़ी और उसने एक छंद कहा
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