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पुण्यपुरुष २४३. दिया। उनके साथ जो नाटक-मंडलियाँ थीं, उनमें से एक मंडली ने नाटक की तैयारी तुरन्त कर डाली।
राजमहल के विशाल चौगान में नाटक का आयोजन किया गया। प्रजा उस नाटक को देखने के लिए उमड़ पड़ी। राजा, रानियाँ, मंत्रिगण, सेनानायक, श्रेष्ठिगण तथा अन्य नागरिक सब यथास्थान बैठे थे। सभी के हृदय फूलों के समान खिले हुए थे।
नाटक आरम्भ हुआ।
सुन्दर चित्रों, पुष्पमालाओं, मणि-माणिक्यों से सजे रंगमंच पर विभिन्न वेश-भूषाओं में सजे अभिनेता तथा अभिनेत्रियाँ यथाक्रम आने लगे। उनके श्रेष्ठ अभिनय को समस्त उपस्थित जन-समुदाय एकटक, आनन्दित होकर देख रहा था । बीच-बीच में 'धन्य-धन्य' तथा 'वाह-वाह' की ध्वनि दर्शकों के बीच से उठती थी और अभिनेताओं के उत्साह का वर्धन करती जाती थी। प्रेरित होकर अभिनेता अपनी सम्पूर्ण श्रेष्ठ कला प्रदर्शित कर रहे थे।
उसी समय अचानक रंग में भंग उपस्थित हो गया। घटना इस प्रकार घटित हुई।
उस नाट्य मंडली की एक प्रमुख नटी थी। जब रंगमंच पर उपस्थित होने का उसका समय हुआ तो वह उपस्थित नहीं हुई। मंडली का नायक घबराया हुआ सज्जा-कक्ष में गया और उस नटी को उदास मुद्रा में बैठा हुआ देखकर बोला
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