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२३४ पुण्यपुरुष कि आपका अब आगे का क्या कार्यक्रम है ? क्या आप सचमुच मेरे पिताजी से यद्ध करना चाहते हैं........?"
"अरे नहीं, मैना ! श्रीपाल अपने ससुर से यद्ध करेगा? ऐसी कल्पना भी तुम कैसे कर सकती हो?" ___ "तब फिर आपने इस नगरी का घेरा क्यों डाला है ? पिताजी को स्पष्ट सूचना क्यों नहीं भिजवा रहे हैं ?" ___"कारण है, मैनासुन्दरी प्रिये ! मैं तुम्हारे पिताजी को अपना भी पिता ही समझता हूँ। उनसे युद्ध करने और व्यर्थ ही रक्तपात करने का मेरा कोई विचार नहीं है। मैं तो केवल उन्हें एक शिक्षा देना चाहता है। ऐसी शिक्षा जो उनके हृदय में उतर जाय और उनकी आत्मा का कल्याण हो।"
मैनासुन्दरी कुछ समझ नहीं सकी । उसने पूछा"कैसी शिक्षा आप उन्हें देना चाहते हैं, नाथ !"
"यही, कि मनुष्य को कभी अभिमान नहीं करना चाहिए। और अपने अभिमान में अन्य व्यक्तियों को कष्ट नहीं देना चाहिए। तुम तो जानती ही हो कि उन्होंने अपने अभिमान के वशीभूत होकर ही तुम्हारा विवाह मेरे जैसे दर-दर के भिखारी कोढ़ी के साथ किया था। क्योंकि वे चाहते थे कि तुम उन्हें सर्वशक्तिमान मानो, और तुमने ऐसा मानने से इन्कार कर दिया था। तुमने कहा था कि प्रत्येक मनुष्य अपने कर्मों के ही शुभ अथवा अशुभ परिणाम
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