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पुण्यपुरुष
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श्रद्धा थी। कर्म-परिणाम पर पूरा भरोसा था। अतः मेरे मन में कहीं कोई दुविधा नहीं थी। मैंने अपनी आत्मा की सम्पूर्ण-श्रद्धा तथा भक्तिपूर्वक आपको स्वीकार किया था। ___ "और आज देखिए न, मेरी धर्म श्रद्धा ने मुझे आज कितना सुखी बना दिया है ! मुझे तो लगता है कि इस भारत-भूमि पर आज मुझसे अधिक सौभाग्यशालिनी अन्य कोई स्त्री नहीं होगी। आपके जैसे महापुरुष मेरे सौभाग्यनाथ हैं। माता कमलप्रभा जैसी ममतामयी सास हैं। और मुझे कभी कोई कष्ट न हो, मुझे अकेलेपन का अनुभव न हो इसीलिए आप अपने साथ मेरी बहुत-सी छोटी बहनों को भी लेते आए हैं।" __यह सुनकर श्रीपाल महाराज को थोड़ी छेड़छाड़ करने की सूझी। यह प्रेमपूर्ण छेड़छाड़ पति-पत्नी के जीवन में अमृत घोल दिया करती है । उन्होंने कहा
"तुम्हारी इतनी सारी भगिनियां में ले आया हूँ यह कहकर तुम मुझ पर व्यंग कर रही हो न ?"
"नहीं, नहीं, ऐसा स्वप्न में भी विचार न कीजिए। मैं आप पर व्यंग करके पाप की भागी क्यों बनूंगी? और फिर मुझे तो अपनी बहनें मिल गई हैं, जिनके साथ मेरा समय हंसते-खेलते व्यतीत रहेगा। जिस समय आप राज्यकार्य में व्यस्त रहा करेंगे उस समय हम लोग भी सब मिलकर आनन्द किया करेंगी।
"लेकिन अब इस चर्चा को छोड़िए और यह बताइये
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