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२३२ पुण्यपुरुष
"माँ ! जिस व्यक्ति पर जिन भगवान की कृपा हो उसके मार्ग में कोई बाधा नहीं रहती। प्रभु के प्रति उसके हृदय की सच्ची श्रद्धा उसके मार्ग के सभी अवरोधों को समाप्त कर देती है। यह शिक्षा तूने ही तो मुझे बचपन से ही दी है। भूल गई क्या ?"
"भूलूंगी कसे ? भला यह भी कोई भूलने की बात है ? प्रभु को भी क्या कभी भुलाया जा सकता है ? किन्तु मैं पूछती हूँ तू आया कैसे ?"
"मेरे साथ चलकर देख ले न माँ ! स्वयं ही जान जायगी । अब चल, उठ।"
जिस गुप्त मार्ग से श्रीपाल महाराज ने नगरी में प्रवेश किया था उसी मार्ग से वे तीनों पुनः अपने शिविर में पहुँच गये।
वहाँ पहुँचते ही रानी कमलप्रभा अपनी नई बहओं को दुलारने में लग गई और श्रीपाल लम्बे प्रवास की थकान उतारने के लिए आँख बन्द करके शय्या में लेट गया।
प्रातःकाल होने पर मैनासुन्दरी ने श्रीपाल से कहा
"नाथ ! मैं कितनी सौभाग्यशालिनी हूँ कि मुझे इस जन्म में आप पतिदेव के रूप में प्राप्त हुए हैं। जब अपना विवाह हुआ था, तब मेरे अतिरिक्त अन्य सभी व्यक्ति मेरे दुर्भाग्य को कोस रहे थे। किन्तु मुझे जिनधर्म में अटूट
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