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२३. पुण्यपुरुष
बस, इससे अधिक प्रतीक्षा श्रीपाल महाराज न स्वयं कर सके और न अपनी प्यारी माता को ही करा सके । उन्होंने द्वार के पट खोले और दौड़कर माता के चरणों में लोट गये। __ बहुत समय से बिछुड़े अपने बेटे को सकुशल, सानन्द, स्वस्थ अपने आंचल की छाया में पाकर माता कमलप्रभा निहाल हो उठी। उसने बार-बार श्रीपाल के मस्तक पर स्नेहपूर्वक हाथ फेरा, उसे चूमा और फिर अन्त में कहा
_ "तू आ गया मेरे लाल ! प्रभु को लाख-लाख धन्यवाद ! तुझे देखने को मेरी आँखें तरस रही थीं । अब मेरा हृदय शीतल हुआ । तू स्वस्थ तो है न ?" __ श्रीपाल महाराज ने देवोपम मुस्कराहट के साथ उत्तर दिया
"माँ ! तेरी और वीतराग जिनप्रभु की कृपा से मैं स्वस्थ और सकुशल हूँ । तू तो व्यर्थ ही चिन्ता करती है।" ___ बेटा सकशल लौट आया था। माता का हृदय अब शीतल, शान्त हो गया था। ' अब रानी कमलप्रभा को ध्यान आया कि बेटे को बहू से भी मिलने का अवसर देना चाहिए। यह ध्यान आते ही वह चटपट यह कहते हुए उठ खड़ी हुई–'अरे, तू भूखा प्यासा होगा। मैं अभी तेरे लिए कुछ खाने-पीने को लेकर आती हूँ।"
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