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पुण्यपुरुष २२६ शान्त खड़े रहकर उन दोनों का वार्तालाप सुनने लगे, कान लगाकर।
महारानी कमलप्रभा कुछ घबराये से, कुछ चिन्तित, कुछ अधीर स्वर में कह रही थीं
"बेटी मैना ! श्रीपाल को यहां से गये कितना समय हो गया, अब तक वह लौटा नहीं । यद्यपि उसके कुशलसमाचार हमें समय-समय पर शशांक तथा उसके कुशल गुप्तचरों द्वारा प्राप्त होते रहे हैं, तथा शशांक के संदेश के अनुसार अब श्रीपाल यहाँ पहुँचने ही वाला होगा, किन्तु अब तक वह आया क्यों नहीं? मुझे चिन्ता हो रही है।" मैनासुन्दरी ने उत्तर दिया--
"माताजी ! आप व्यर्थ ही चिन्ता करती हैं। मुझे दृढ़ विश्वास है कि वे अब आने ही वाले हैं।"
"किन्तु बेटी ! यह जो किसी शक्तिशाली राजा ने उज्जयिनी को घेर लिया है, उसका क्या होगा ? श्रीपाल आएगा भी तो उसे नगरी में प्रवेश के लिए युद्ध करना होगा । युद्ध का परिणाम........."
"माताजी ! मुझे और आपको भी जिनप्रभ की कृपा में दृढ़, अचल आस्था है । आप चिन्ता न कीजिए। मेरा मन तो जाने क्यों और कैसे यह कहता है कि वे आ ही पहुँचे हैं । आज प्रातःकाल से ही जो-जो लक्षण मुझे दिखाई दिये वे सभी यह संकेत करते हैं कि आज उन्हें आना ही चाहिए........।"
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