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________________ पुण्यपुरुष २२७ भागे-भागे श्रीचरणों में यह सूचना देने उपस्थित हो गये हैं।" "अच्छा ठीक है, देखा जायगा। लोहे से लोहा टकराने से अग्नि की कैसी भीषण चिनगारियां निकलती हैं यह अब प्रकट होगा । जाओ, सेनापति को उपस्थित करो।" राजाज्ञा प्राप्त होते ही सेनापति उपस्थित हुआ। राजा प्रजापाल ने तुरन्त आदेश दिया "नगरी के सभी द्वार बन्द करा दीजिए । एक चिड़िया भी अब मेरी आज्ञा के बिना नगरी में प्रवेश न करे । सैन्य को तैयार करके नगर-प्राचीर पर कदम-कदम पर सन्नद्ध कर दीजिए । गुप्तचरों की सूचना के अनुसार कोई अत्यन्त बलवान राजा हमारी नगरी पर आक्रमण करने आ रहा है, बल्कि आ ही पहुंचा है। किन्तु राजा प्रजापाल के खड्ग की धार उसने अभी देखी नहीं है। छठी का दूध किसे कहते हैं, यह उसे ज्ञात नहीं है। वह अब हो जायगा। जाइये, अपनी तैयारी कीजिए और मंत्रिमंडल को भी मेरे पास भिजवा दीजिए।" । ____ इस प्रकार उज्जयिनीनरेश ने अपनी मोर्चाबन्दी कर ली। वह जनम-जनम का अहंकारी था, यह बात पाठक भूले नहीं होंगे। उसके इस अहंकार के सदा-सदा के लिए विनष्ट हो जाने की घड़ी आ पहुंची थी। और अपनी विजय-वैजयन्ती फहराते हुए महाराज श्रीपाल ससैन्य उज्जयिनी के आँगन तक आ पहुँचे थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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