________________
२२६ :
पुण्यपुरुष
मेवाड़, सौराष्ट्र, लाट, भोट इत्यादि अनेक राज्यों पर अपनी विजय-वैजयन्ती फहराते हुए तथा वहाँ के नरेशों को पुनः उनका राज्य सौंपकर एक सूत्र में बांधते हुए, उन नरेशों के हृदयों को प्रेम और उदारता से जीतते हुए महाराज श्रीपाल द्र तगति से, आँधी की तरह उज्जयिनी की ओर बढ़ रहे थे।
मंजिल जब समीप ही आ रही थी तब उज्जयिनी के गुप्तचरों ने घबराहट में अपने राजा प्रजापाल को आधीअधूरी सूचना दी--
"महाराज ! सावधान हो जाइये । कोई अत्यन्त शक्तिशाली सम्राट् अपनी नगरी पर आक्रमण करने आँधी की तरह आगे बढ़ा चला आ रहा है।"
सूचना सुनकर महाराज प्रजापाल ने अपनी तलवार पर हाथ रखा और कहा___ "किसका साहस है जो महाकाल की इस नगरी उज्जयिनी पर आक्रमण करे ? किसे अपना जीवन प्रिय नहीं रहा जो मुझसे टकराने आ रहा है ? कौन है वह ? शीघ्र
कहो।"
"महाराज हम यह तो नहीं जान सके कि वह कौन है, किन्तु इतना निश्चित है कि उसके सैन्य और उसकी शक्ति का कोई पार नहीं है। हम लोग तो यही देखकर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org