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२२४ पुण्यपुरुष तुझे मृत्यु के मुख से ये वापस लौटा लाये हैं। हम सब इनके कृतज्ञ हैं । तू इन्हें प्रणाम कर।"
राजकुमारी ने अपना अस्त-व्यस्त आँचल ठीक किया, सिर ढका और विनीत भाव से श्रीपाल को प्रणाम किया।
उसे सदा सुखी रहने का आशीर्वाद देकर श्रीपाल ने राजा महासेन से कहा___"राजन् ! अब मैं जाना चाहता हूँ। मैं कुछ जल्दी में हूँ। अपनी माता से मिले हुए मुझे बहुत समय हो गया है। वे मेरी प्रतीक्षा में होंगी। अतः अब मझे आज्ञा दीजिए।"
यह कहकर श्रीपाल महाराज वहाँ से प्रस्थान करने के लिए उद्यत हुए किन्तु राजा महासेन ने उन्हें रोकते हुए आग्रह किया
"हे महाभाग ! मेरी एक विनय सुनते और स्वीकार करते जाइये । आपका शुभ पदार्पण कुछ ऐसी परिस्थितियों में हुआ कि मैं आपका कुछ भी सत्कार नहीं कर सका हूँ। अब तो मेरी यह विनय है कि जब आपने मेरी इस बेटी को जीवनदान दिया है तो इसके भावी जीवन के स्वामी भी आप ही बनिए । मैं एक छोटे-से राज्य का अधिपति हूँ। आपके समक्ष नगण्य हूँ। आपकी कुछ सेवा मैं नहीं कर सकता । किन्तु मेरी यह बेटी तिलक बड़ी ही गुणवती है । मेरे लिए तो यह एक अनमोल रत्न ही है। मैं यह रत्न आपके श्रीचरणों में चढ़ाकर अपने जीवन के ऋण से
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