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पुण्यपुरुष २२३ कुछ ही क्षणों में पूर्णतः सचेत, सजीवन होकर वह उठ बैठी।
यह चमत्कार देखकर वहाँ उपस्थित सारा जन-समुदाय आश्चर्यमुग्ध हो गया और श्रीपाल महाराज की जय-जयकार से गगन को गुंजाने लगा।
उस राज्य के नागरिकों को अपनी प्यारी राजकुमारी वापस मिल गई थी। .. एक बाप की बेटी मृत्यु के भयानक मुख से निकलकर उसकी छाती से चिपट गई थी।
सुख ! सुख ! चारों ओर सुख व्याप्त हो गया था। : राजकुमारी स्वयं चकित थी-उसे क्या हो गया था? ये सब लोग उसे घेरे हुए क्यों खड़े हैं ? वह राजमहल में न होकर इस जंगल में क्यों पड़ी है ? और........और ये सामने जो एक देवात्मा महापुरुष खड़ा है, वह कौन है ? उसे तो उसने कभी देखा भी नहीं........! ___अपनी प्यारी बेटी के इन सभी मौन प्रश्नों को राजा महासेन समझ गये थे। बड़े ही दुलार से बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने कहा___"बेटी ! तू महाभाग्यवान है और अब सभी संकटों से परे है। चिन्ता न कर । तुझे सर्प ने काट लिया था और तू मृत्यु के मख में चली ही गयी थी। किन्तु ये जो महापुरुष तेरे सामने खड़े हैं, उन्होंने चमत्कार ही दिखाया है और
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