SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२० पुण्यपुरुष स्वीकार की तथा अनेक प्रकार की मूल्यवान भेंटे उन्हें प्रदान की। किन्तु श्रीपाल महामना पुरुष थे। उन्होंने किसी भी राजा को उसके राज्य से वंचित नहीं किया। प्रेमपूर्वक उनकी भेंट स्वीकार करके, अपनी ओर से उन्हें समुचित उपहार देकर उन्हें अपने-अपने राज्य का संचालन पूर्ववत् करते रहने का आदेश दिया। उन राजाओं को श्रीपाल महाराज का यही कथन था-- "आप लोग अपने-अपने राज्य के स्वामी बने रहिए। मेरा तो इतना ही कहना है कि आप लोग कभी आपस में न लड़ें। एक-दूसरे के राज्य की सीमाओं को स्वीकार करें तथा अपनी प्रजा को कभी कोई कष्ट न होने दें। प्रजा का आप पुत्रवत् पालन करें। हाँ, एक बात स्मरण और भी रखें-यदि कभी हमारी इस पवित्र आर्यभूमि पर कोई विदेशी अनार्य आक्रमण करे तो, आप सबको मेरे साथ मिलकर, एक ही ध्वज के नीचे रहकर उस आततायी से युद्ध करना होगा।" विजयी श्रीपाल महाराज की इस उदारता तथा प्रजाप्रेम को देखकर अन्य सभी राजा स्वयमेव अपनी ही अन्तःप्रेरणा से उन्हें अपना अघोषित सम्राट मानने लगे। और श्रीपाल महाराज का सैन्य पड़ाव आगे बढ़ता रहा। चलते-चलते वे सोपारक नामक राज्य में पहुँचे तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy