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पुण्यपुरुष २१६ "और देखिए अमात्यवर, राजपुरोहितजी को भी शीघ्र बुलवा लीजिए। शुभ मुहूर्त खोजना होगा न ?"
इस प्रकार घोषणा कर दी गई और उसे सुनकर नगरनिवासी प्रसन्न हो उठे। श्रीपाल जैसे राजा को पाकर वे स्वयं को भाग्यवान मानने लगे।।
शुभ मुहूर्त में राजतिलक भी हो गया।
अब तक वास्तविक राजा न होते हुए भी एक सम्राट की शोभा धारण करने वाला श्रीपाल अब वास्तविक 'महाराज' हो गया।
अब श्रीपाल केवल श्रीपाल ही नहीं था--अब वे थे महाराज श्रीपाल ! स्थानपुर के राजाधिराज श्रीमान् महाराज!
महाराज श्रीपाल सभी प्रकार से सुखी थे। किन्तु अपनी पूज्या माता तथा प्रिय रानी मैनासुन्दरी से मिलने के लिए वे अब अधीर हो रहे थे । अतः एक दिन महाराज वसुपाल से आज्ञा प्राप्त कर वे अपनी सभी रानियों सहित अपनी माता से मिलने मालव प्रदेश की ओर चल पड़े।
महाराज श्रीपाल का विपुल सैन्य धीरे-धीरे मालवप्रदेश की ओर बढ़ने लगा। जिस मार्ग से वे आगे बढ़ रहे थे, उस मार्ग में पड़ने वाले प्रत्येक राजा ने श्रीपाल की असीम शक्ति तथा असीम औदार्य देखकर उनकी अधीनता
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