________________
११६ पुण्यपुरुष र्वाद देते हए विदा किया। सारी नगरी उसे विदा करने के लिए बहुत दूर तक गई और बड़े समझाने-बुझाने के बाद भारी मन से लौटी।
राजा न होते हुए भी एक सम्राट् की भाँति श्रीपाल स्थानपुर की ओर सदलबल चल पड़ा, जहाँ उसके मामा वसुपाल उसकी उत्कंठा से प्रतीक्षा कर रहे थे।
श्रीपाल के स्थानपुर पहुँचने की सूचना तीव्रगामी दूतों से प्राप्त कर राजा वसुपाल को बड़ा हर्ष हुआ। अपने भानजे से मिलने के लिए वे कुछ सैनिकों के साथ नगर से बाहर बहुत दूर तक चले गये। ___ अन्त में मार्ग में दोनों ओर से आगे बढ़ रहे उन दोनों दलों की भेंट हो ही गई। राजा वसुपाल ने श्रीपाल का वैभव देखा और उनकी छाती फूल उठी। उन्होंने बड़े प्रेम से उसे अपने गले लगा लिया। उसके बाद श्रीपाल की सभी रानियों को आशीर्वाद देकर वे श्रीपाल के साथ-साथ उसकी लम्बी यात्रा का वर्णन विस्तार सहित सुनते हुए नगर की ओर लौट चले।
राजा वसुपाल भाग्यवशात् निस्संतान थे। वे श्रीपाल को बहुत प्यार भी करते थे। श्रीपाल प्रत्येक दृष्टि से सुयोग्य थे। अतः एक दिन उन्होंने श्रीपाल के सामने प्रस्ताव रखा
_ "पुत्र श्रीपाल ! मैं तुम्हें अपना पुत्र ही मानता हूँ, अतः इस सम्बोधन से चौंकना नहीं । प्रभ की साक्षी में मैं तुम्हें
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org