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२१४ पुण्यपुरुष
उसे देखते ही राजा पुरन्दर, रानी विजया, आचार्यवर तथा राजकुमारी जया के हृदयों में एक अजीब प्रकार के सन्तोष, विश्वास, शांति और आनन्द का स्फुरण हुआ। उन सबकी आत्मा मानों भीतर ही भीतर बोल पड़ीतुम्हारी प्रतीक्षा की घड़ियाँ समाप्त हुई । तुम्हारा सौभाग्य सूर्य आ पहुँचा।
नवकार मन्त्र की एकाग्र, तन्मय भाव से आराधना कर श्रीपाल ने इतनी आसानी से राधावेध कर दिया मानों वह कोई कठिन कार्य हो ही नहीं-बच्चों का खेल मात्र हो।
और इस कार्य के सम्पन्न होते ही राजा पुरन्दर की नगरी हर्ष के हिण्डोले में झूल उठी। __ सारी नगरी इस प्रकार उत्सव मनाने में डूब गई कि जैसे उन्हें अपने जीवन की चरम सिद्धि प्राप्त हो गई हो।
राजकुमारी जयसुन्दरी तथा श्रीपाल का विवाह इतनी धूमधाम से हुआ कि लोगों के कानों के परदे फटने लगे। जय-जयकार तथा पवित्र मन्त्रों की ध्वनि ने आकाश को गुंजा दिया। __सुखपूर्वक अपनी नई रानी के साथ समय व्यतीत करता हुआ भी श्रीपाल बेचैनी से शशांक की प्रतीक्षा करने लगा। अब उसकी अपनी माता के दर्शन की लालसा तीव्र " हो गई थी।
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