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पुण्यपुरुष
२०६
"गुरुदेव ! मैंने निश्चय किया है कि जो वीरपुरुष राधावेध करेगा, वही........."
जयसुन्दरी अपना वाक्य पूरा नहीं कर सकी, सहज संकोचवश । किन्तु गुरुदेव उसके मन की बात को समझ गये । वे ही बोले
"बेटी ! तुम संकोच कर रही हो। स्वाभाविक ही है। कुमारी बालिकाएँ अपने मुख से अपने विवाह अथवा अपने भावी पति के विषय में कुछ नहीं कहतीं। यह उनकी कुलीनता का परिचायक है। किन्तु यदि मैं ठीक समझ रहा हूँ तो शायद तुम यही कहना चाहती हो कि जो वीर पुरुष राधावेध करेगा, तुम उसी के साथ विवाह करोगी, अन्य किसी के साथ नहीं। क्यों, मैंने ठीक समझा न बेटी ?"
अब अपने संकोच का कुछ त्याग कर जयसुन्दरी ने उत्तर दिया
"हां गुरुदेव ! आप ज्ञानी हैं । आपने मेरे मन की बात को ठीक समझ लिया है।"
"लेकिन........लेकिन बेटी ! तुम्हारा यह निश्चय बड़ा कठोर है। आज के युग में राधावेध कर सकने वाला कोई प्रतापी पुरुष मिलना बहुत कठिन है, लगभग असम्भव ही है। अच्छा होता कि तुम अपने इस दृढ़ निश्चय को बदल सकती........" ___"नहीं, गुरुदेव ! मैं आपकी शिष्या हूँ। एक बार
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