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पुण्यपुरुष
निश्चय कर लेने के बाद उससे फिर कभी डिगना नहीं चाहिए, यह शिक्षा आप ही ने मुझे दी है । और मैं निश्चय कर चुकी हूं।" किन्तु जरा विचार तो करो कि इसका परिणाम क्या होगा ? यदि इस आर्यावर्त में इस समय कोई ऐसा महापुरुष न हुआ जो राधावेध कर सके, तब क्या होगा ?"
"सो तो ठीक है, बेटी! किन्तु
"तब कुछ नहीं होगा, गुरुदेव ! आपकी यह शिष्या ऐसी परिस्थिति में आजन्म कुमारी ही रहेगी । गुरुदेव ! प्रणाम । आज का अभ्यास पूर्ण हुआ । आज्ञा चाहती हूँ ।"
इतना कहकर तथा अपने आचार्य को विनयपूर्वक वन्दन करके राजकुमारी जयसुन्दरी अपने आवास में चली गई ।
आचार्य अपने आसन पर कुछ समय तक तो निश्चल, मौन, चिन्तातुर बैठे रहे । फिर 'हे प्रभु, हे वीतराग भगवन्त !' कहते हुए वे धीरे-धीरे उठे और सीधे राजा पुरन्दर के पास पहुँचे ।
इस असमय में आचार्य को आया हुआ देखकर राजा को भी आश्चर्य हुआ । उन्होंने आचार्य को प्रणाम करते हुए पूछा
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"कहिए, आचार्यवर ! आज इस समय कैसे पधारना हुआ ? कोई विशेष प्रयोजन है क्या ?"
आचार्य ने एक हल्का-सा निश्श्वास फेंकते हुए अपना आसन ग्रहण किया और कहा
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