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________________ २१० पुण्यपुरुष निश्चय कर लेने के बाद उससे फिर कभी डिगना नहीं चाहिए, यह शिक्षा आप ही ने मुझे दी है । और मैं निश्चय कर चुकी हूं।" किन्तु जरा विचार तो करो कि इसका परिणाम क्या होगा ? यदि इस आर्यावर्त में इस समय कोई ऐसा महापुरुष न हुआ जो राधावेध कर सके, तब क्या होगा ?" "सो तो ठीक है, बेटी! किन्तु "तब कुछ नहीं होगा, गुरुदेव ! आपकी यह शिष्या ऐसी परिस्थिति में आजन्म कुमारी ही रहेगी । गुरुदेव ! प्रणाम । आज का अभ्यास पूर्ण हुआ । आज्ञा चाहती हूँ ।" इतना कहकर तथा अपने आचार्य को विनयपूर्वक वन्दन करके राजकुमारी जयसुन्दरी अपने आवास में चली गई । आचार्य अपने आसन पर कुछ समय तक तो निश्चल, मौन, चिन्तातुर बैठे रहे । फिर 'हे प्रभु, हे वीतराग भगवन्त !' कहते हुए वे धीरे-धीरे उठे और सीधे राजा पुरन्दर के पास पहुँचे । इस असमय में आचार्य को आया हुआ देखकर राजा को भी आश्चर्य हुआ । उन्होंने आचार्य को प्रणाम करते हुए पूछा - "कहिए, आचार्यवर ! आज इस समय कैसे पधारना हुआ ? कोई विशेष प्रयोजन है क्या ?" आचार्य ने एक हल्का-सा निश्श्वास फेंकते हुए अपना आसन ग्रहण किया और कहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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