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युष्य पुरुष
भयानक भुजंगों से भी अधिक कुटिल और घातक थे । स्वार्थ और ईर्ष्या के मारे वे तुच्छ मानव-जन्तु अपनी जहरीली दाढ़ों में भीषण कालकूट धारण किये बैठे थे ।
उन हत्यारे मानव-पशुओं का नेता था अजितसेन । अजित सेन राजा सिंहरथ का चचेरा भाई था । वह कुटिल था, स्वार्थी था, तुच्छ था, घोर अधार्मिक था । अपने चचेरे भाई, राजा सिंहरथ के सूने सिंहासन को हड़प लेने के लिए वह काक- दृष्टि लगाये बैठा था ।
उसने जब सुना कि रानी गर्भवती हुई है तो वह ईर्ष्या, निराशा और क्रोध से सर्प की भाँति ऐंठ गया । उसे अपनी आशाओं पर पानी फिरता प्रतीत हुआ । सिंहरथ की मृत्यु के बाद वह सिंहासन सरलतापूर्वक हथिया लेगा, ऐसी उसको आशा थी । किन्तु अब जब राज्य का उत्तराधिकारी आ रहा था तब उसकी इस कुटिल कामना की पूर्ति कैसे होगी ? चम्पानगरी की राजभक्त प्रजा यह कैसे सहन करेगी कि उनके राजकुमार के रहते कोई अन्य व्यक्ति राज्य पर अधिकार कर ले ?
अपनी लम्बी-लम्बी, काली मूछों को बार-बार ऐंठता, दाहिने हाथ की मुट्ठी को बायें हाथ की हथेली पर ठोकता हुआ वह अपने आवास के एक विशाल कक्ष में तेज-तेज कदमों से इधर-उधर चक्कर काट रहा था और कोई क्रूर उपाय सोच रहा था ।
सारी चम्पानगरी आनन्द और उल्लास में मग्न थी ।
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