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२.४
पुण्यपुरुष
श्रीपाल ने समस्या ध्यानपूर्वक सुनी । उसका समाधान . उसके मन में क्षण मात्र में ही आ गया। किन्तु वह कुछ कौतुक प्रिय भी था। अतः उसने सीधे अपने मुख से ही उसका उत्तर न देकर समीप ही पड़ी हुई रत्नजटित एक पुतली उठाई और उसी के मुख से उन कुमारियों की समस्या का समाधान कहलवा दिया।
यह देखकर वे सभी चपला-चंचला कुमारियां चकित रह गई।
वे लजा भी गईं। उनके बड़े-बड़े नेत्रों की लम्बीलम्बी पलके सहज ही भूमि की ओर झुक गईं। क्योंकि अब निश्चित हो चुका था कि यह जो महापुरुष उनके सामने झूले पर बैठा था वह अब उनका पति था--भावी पति था, विधिवत् विवाह संस्कार होने तक।
उन्हें इस प्रकार मौन और लजाया हुआ देखकर श्रीपाल ने उन्हें थोड़ा सा छेड़ा___ "मैं तो बहुत पढ़ा-लिखा व्यक्ति नहीं हूँ। हो सकता है कि मैं आपकी समस्या का समाधान नहीं कर सका । अतः क्षमा चाहता हुआ आज्ञा चाहता हूँ।"
इतना कहकर श्रीपाल झूले से उतरकर उद्यान के द्वार की ओर चलने लगा। यह देखकर राजकुमारी और उसकी सखियाँ एकदम घबरा गई । संकोच त्यागकर राजकुमारी शृगारसुन्दरी ही झट से बोल पड़ी
"भरे महोदय........ठहरिए। हमारी समस्याओं का
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