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राजकुमारी तथा सखियां मन ही मन बड़ी प्रसन्न हुई तथा उनके मन में सहज ही यह विश्वास जाग आया कि हो न हो यह महापुरुष ही हमारा भावी पति होने वाला है तथा हमारी कठिन समस्याओं का समाधान यह अवश्य कर देगा।
"अरी, श्रीमान को आसन तो दे।"
"उसकी कोई आवश्यकता नहीं"- श्रीपाल ने कहा"स्फटिक शिलाओं से बने ये झूले इन सघन कुंजों में बड़े सुन्दर हैं। इन्हीं पर हम लोग बैठ जायेंगे तथा शंकासमाधान प्राप्त कर लेंगे।"
यह कहकर हँसता हुआ श्रीपाल एक झूले पर जा बैठा। राजकुमारी तथा पांचों सखियां भी उसके सामने के एक-दो झूलों पर बैठ गई।
अब कुछ क्षण के लिए वहाँ मौन छा गया, जो कि स्वाभाविक संकोचवश था। केवल रंग-बिरंगे, सुन्दर पक्षियों की मीठी-मीठी, प्यारी-प्यारी बोलियाँ ही सुनाई दे रही थीं। किन्तु संकोच से काम कब तक चले ? श्रीपाल ने ही पहल करते हुए कहा"कहिए, आपकी क्या समस्या है ?" 'तू बता-तू बता री-अरे तू ही बता दे ना !"-- करते-करते अन्त में पण्डिता ने ही समस्या प्रस्तुत की।
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