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पुण्यपुरुष २०५ समाधान हो गया है। आप तो........अरी पण्डिता ! तू कुछ बोलती क्यों नहीं, वे चले जा रहे हैं........।" ___ अब पण्डिता मुस्कराते हुए आगे बढ़ी और उसने श्रीपाल का रास्ता रोककर शरारतपूर्ण स्वरों में कहा___ "श्रीमानजी ! अब आपको इतनी सरलता से छुट्टी नहीं मिलने वाली। उधर नहीं, इधर पधारिए, राजमहल की ओर । महाराज आपसे मिलकर बहुत प्रसन्न होंगे। पधारिए।"
श्रीपाल ने यह प्रेमपूर्ण आग्रह स्वीकार कर लिया।
महाराज धरापाल तथा महारानी गुणमाला को जब यह सूचना मिली कि राजकुमारी तथा उसकी सखियों की समस्याओं का समाधान किसी विद्वान तथा वीर पुरुष ने कर दिया है तब उनकी प्रसन्नता का कोई अन्त नहीं रहा । उनकी चिन्ता दूर हो गई। सिर से बोझ उतर गया। वे बड़े प्रेम और भक्तिपूर्वक श्रीपाल से मिले। __उसी दिन शुभ मुहूर्त में राजकुमारी तथा उसकी पांचों सखियों का विवाह श्रीपाल के साथ धूमधाम से कर दिया गया।
श्रीपाल को जब विवाह समारोह से फुरसत मिली तब उसने शशांक से कहा___ “शशांक अब यहाँ से चलना चाहिए । तुमने यह राधाबेध की झंझट और खड़ी कर दी है, अन्यथा हम लोग
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