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पुण्यपुरष २०१ और उत्साही वीरवर प्रयत्न कर चुके और निराश होकर लौट गये। राधा-वेध किसी से हुआ नहीं और राजकुमारी कुमारी ही बैठी है। कोल्लागपुर यहां से अधिक दूर भी नहीं है....।" ___"दूर-पास का प्रश्न नहीं है शशांक ! अब मैं जल्दी माताजी के पास पहुंचना चाहता हूँ।" ___ "सो तो चलना ही है। किन्तु किसी भी सच्चे वीर पुरुष के लिए किसी भी कुमारी को प्रतीक्षा करते छोड़ जाना भी अनुचित है। इससे पुरुष का पुरुषार्थ लज्जित होता है । मैं तो स्वयं आपको लेने आया ही हूँ। किन्तु हम लोग अब राजकुमारी जयसुन्दरी को भी अपने साथ लेकर ही चलेंगे।"
"ओ हो ! तू तो ऐसे कह रहा है जैसे राधा-वेध कोई बच्चों का खेल हो........।" ___"बच्चों का खेल ही होता तो अब तक राजकुमारी कुमारी नहीं बैठी रहती। किन्तु श्रीपाल जिस महापुरुष का नाम है, उसके लिए अवश्य यह एक सामान्य कार्य है, ऐसा मुझे विश्वास है।" ___ "अच्छा, अच्छा; अब रहने दे चापलूसी और चुपचाप सो जा। रात कितनी बीत चुकी है।"
थके हुए दोनों मित्र गाढ़ी नींद में सो गये।
दूसरे दिन श्रीपाल राजमहल की भोर गया। उस
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