SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुण्यपुरुष १९६ उलझन और यहाँ खड़ी हो गई है। कल इससे निपट लें तो चलें।" “अब फिर कौनसी नई उलझन खड़ी हो गई है ? क्या कोई सुन्दरी यहाँ भी श्रीपाल महाशय के नाम की माला नपती बैठी है।" "हाँ 55 s ठीक-ठीक ऐसा ही तो नहीं, किन्तु बहुत कुछ ऐसा ही समझ लो। किन्तु पहले भीतर चलकर विश्राम कर । आ, अब तो बातें करने के लिए सारी रात शेष पड़ी है।" वृद्ध चौकीदार ने श्रीपाल तथा शशांक के भोजनादि का सब प्रबन्ध कर दिया । अश्वों की देख-रेख भी कर ली और फिर वह सो गया। एक बूढ़े चौकीदार को जितनी निद्रा आ सकती है उतनी निद्रा का सुख उसने लिया ही होगा। श्रीपाल और शशांक रात बहुत देर तक बातें करते रहे । श्रीपाल ने अपनी लम्बी यात्रा और उस यात्रा में घटित घटनाओं तथा अपने अनुभवों का खूब विस्तार से वर्णन किया तथा शशांक ने भी महारानी कमलप्रभा तथा मैनासुन्दरी के सभी कुशल-समाचार उसे बताये । अन्त में श्रीपाल ने कहा "शशांक ! मैं भी भटकता-भटकता अब खूब थक गया हूँ। माताजी के दर्शन करने के लिए जी अकुला रहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy