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= पुण्यपुरुष
"क्या आप भी मेरे ही समान रैनबसेरा खोज रहे हैं ?"
यह सुनना था कि वह नवागन्तुक दौड़कर श्रीपाल से लिपट गया । क्षण भर के लिए तो श्रीपाल चौंका, किन्तु फिर दूसरे ही क्षण प्रसन्नता के आवेग बोल पड़ा
"अरे, तू है क्या शशांक ! भले आदमी, तू यहाँ कहाँ से आ टपका ? माताजी कैसी हैं ? स्वस्थ हैं न ? और मैना ........ लेकिन तू यहाँ कैसे आया ? उन्हें अकेला छोड़कर आ गया ?"
आगन्तुक अश्वारोही शशांक था । श्रीपाल उसे अचानक वहाँ पाकर एकदम प्रसन्न और विस्मित हो गया था । उसने एक साथ ही अनेक प्रश्न उससे पूछ डाले थे ।
शशांक ने अब उत्तर दिया
" माताजी स्वस्थ एवं प्रसन्न हैं । भाभी भी सकुशल हैं । सब ठीक हैं और अब तुम्हारी प्रतीक्षा तीव्रता से कर रही हैं । तुम्हें खोजकर पकड़ लाने के लिए ही मुझे उन्होंने भेजा है, समझे ? बहुत भटक लिए। बहुत नारीरत्न इकट्ठे कर लिए तुमने । अब चलो, अपने घर लौट चलो ।"
"हाँ हाँ, शशांक ! अब तो घर लौटना ही है । अब तक शायद मैं वहाँ पहुँच भी गया होता और पूज्य माताजी के चरणों में शीश नवा चुका होता, किन्तु यह एक
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