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पुण्यपुरुष
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का जुगाड़ हो ही जाता है। किन्तु आप थके हुए होंगे। आपका अश्व भी थका होगा | आइये, पान्थशाला में भीतर पधारिए, विश्राम कीजिए। तब तक में आपके अश्व को दानापानी दिये देता हूँ । आप भीतर इस बड़े कमरे में पधारिए । बहाँ सब व्यवस्था है। हवा भी वहीं अच्छी आती है ।"
इतना कहकर वृद्ध सेवक श्रीपाल के अश्व की देख-रेख में लग गया और श्रीपाल पान्थशाला के भीतर जाकर उस कमरे के वातायन में से बाहर के सुरम्य वातावरण को देखने लगा ।
उसी समय श्रीपाल को दूर क्षितिज पर कुछ धूल उड़ती हुई दिखाई दी । उसने सोचा कोई अन्य यात्री भी रात भर के आश्रय की खोज में इधर ही आ रहा है । थाड़ा हा दर में दौड़ते हुए अश्व की टापों की आवाज भी सुनाई पड़ने लगी और उसके कुछ ही पलों बाद एक अश्वाराही भी श्रीपाल के दृष्टि पथ में आ गया ।
अश्वारोही का चेहरा अन्धकार के झुटपुटे के कारण ठीक दिखाई नहीं दे रहा था । किन्तु उसके तीव्रगामी अश्व की गति बताती थी कि वह बड़ी शीघ्रता से आ रहा था। देखते ही देखते वह उस पान्थशाला के द्वार तक आ पहुँचा, कूदकर अश्व से नीचे उतरा और कुछ सोचतासा क्षणभर खड़ा रह गया ।
श्रीपाल उत्सुकतावश अपने कमरे से बाहर निकल आया और उस नवागन्तुक अश्वारोही के समीप जा पहुँचा और बोला
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