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पुण्यपुरष
“यही तो रोना है श्रीमान् ! प्रतिदिन अनेक राजामहाराजा चले आते हैं-किसी को अपने धन का, किसी को अपनी वीरता का, किसी को अपने विशाल राज्य का और किसी-किसी को अपने पांडित्य का भी गर्व होता है, किन्तु राजकुमारी तथा उसकी सखियों की समस्या का उत्तर किसी के पास नहीं होता। बस, इसी प्रकार दिन बीतते जा रहे हैं और राजकुमारी की आयु भी चन्द्रकला की भाँति बढ़ती जा रही है।
इतना कहकर वह भावुक प्रवासी बोलते-बोलते रुक गया । ऐसा प्रतीत होता था जैसे वह स्वयं उस राजकुमारी का सगा हो और उसके विवाह की चिन्ता से दुखी हो।
श्रीपाल ने कुछ क्षण विचार किया और फिर कहा
"महाशय ! आपने मुझे दुविधा में डाल दिया है। मुझे अपना देश छोड़कर प्रवास करते हुए काफी अधिक समय हो गया है, और अब मैं शीघ्र लौट जाना चाहता हूँ....."
"लौटना तो होगा ही श्रीमान्!"--प्रवासी ने कुछ उदास स्वर में कहा-"किन्तु जाने क्यों मेरा मन कहता है कि उस अनुपम राजकुमारी का भविष्य आपके साथ जुड़ा हुआ है। मुझे आकाश के नक्षत्र बताते हैं कि आपका और राजकुमारी शृंगारसुन्दरी का शुभमिलन बड़ा मंगलमय होगा । बस, यदि आप थो। कष्ट उठा सकते........।"
"अरे भाई ! कष्ट की तो कोई बात नहीं है। सोचता
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