________________
१९० पुण्यपुरुष वस्तुस्थिति को स्वीकारें और अपने-अपने घर पधारें। अन्यथा........"
"अन्यथा तुम क्या कर लोगे? जरा कहो तो? अभी तुम्हारे दूध के दांत भी नहीं गिरे। क्या तुम हम लोगों से युद्ध करोगे ?"-बहुत से नरेश एक साथ कह उठे।
श्रीपाल ने पुनः शान्तिपूर्वक ही कहा
"निरर्थक युद्ध में मुझे विश्वास नहीं है। व्यर्थ ही रक्तपात होता है। हिंसा होती है। मैं अहिंसक व्यक्ति हूँ। इसीलिए आप सबसे कह रहा हूँ कि आप लोग शान्त हो जायँ ।"
"शान्ति-शान्ति चिल्लाने वाले कापुरुष हुआ करते हैं। तुम भी उन्हीं कापुरुषों में से हो क्या ? युद्ध करते हुए भय लगता है क्या ?"-एक राजा कुछ आगे बढ़कर बोला।
तब श्रीपाल ने अन्तिम चेतावनी देते हुए कहा---
"श्रीपाल को कापूरुष कहने वाले व्यक्ति का सिर उसके धड़ पर अधिक समय तक नहीं टिकता। मैं आप सबको चेतावनी देता हूँ........।"
"अरे बड़ा आया है हमें चेतावनी देने वाला" कहते हुए कुछ नरेश श्रीपाल पर तलवारों का वार करने के लिए टूट पड़े।
सावधान श्रीपाल ने उन लोगों के उस प्रचण्ड वार को बड़ी कुशलता और फुर्ती से बचा लिया और विवश होकर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org