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________________ पुण्यपुरुष १८६ अब तो उस राजसभा में भूचाल-सा आ गया। बड़ीबड़ी मूंछों वाले अनेक राजा एक युवक के सामने परास्त हो गये थे । वे स्वयं को अपमानित अनुभव कर रहे थे कि राजकुमारी ने उन सब बड़े-बड़े, यशस्वी राजाओं को छोड़कर एक अज्ञात कुल-शील वाले युवक को अपना लिया था। क्रोध और अपमान के दंश से दग्ध उन राजाओं ने भरी सभा में अपनी-अपनी तलवारें खींच लीं। वे श्रीपाल को घेरकर चिल्लाने-चीखने लगे___ "यह हमारा घोर अपमान है। इसे सहन नहीं किया जा सकता । हम राजकुमारी का विवाह इस अनजान युवक के साथ नहीं होने देंगे। युवक ! तुम अपनी तलवार निकालो और हम से युद्ध करो।" __ श्रीपाल आनन्द से अपने आसन पर बैठा हुआ था और मुस्कुरा रहा था। जब शोरगुल अधिक बढ़ गया और उसके प्रतिद्वन्द्वी राजा उसके अधिक समीप आकर अपनी तलवारें चमकाने लगे, तब वह उठा, उसने अपनी तलवार म्यान से बाहर निकाली और कहा "उपस्थित नरेशो ! मैं समझता हूँ कि आप लोग अनधिकार चेष्टा कर रहे हैं । यह स्वयंवर है । राजकुमारी ने अपनी इच्छा से मुझे अपना वर चुना है। अब उसके सम्मान की रक्षा करना मेरा कर्तव्य है । अतः मैं एक बार आप सबसे अनुरोध करता हूँ कि आप लोग शान्त होकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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