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१८६ पुण्यपुरुष अन्य राजाओं के कलेजे बैठे जा रहे थे, हृदय पर साँप लोट रहे थे, किन्तु श्रीपाल इसमें क्या करें? वह तो निश्चिन्त, मगन मन बैठा-बैठा सुसज्जित स्वयंवर-मंडप की शोभा को निहार रहा था।
उसी समय शंखनाद हुआ। स्वयंवर मंडप में शान्ति छा गई । यह शंखनाद राजकुमारी के मंडप में पदार्पण का संकेत था।
राजद्वार में से निकलकर राजकुमारी अपनी सखीसहेलियों तथा दासियों के साथ मंडप में इस प्रकार प्रविष्ट हुई मानो किसी घने बादल के बीच से अचानक चाँद निकल आया हो । राजकुमारी के हाथों में सुगंधित कमलपुष्पों की सुन्दर वरमाला सुशोभित थी। यही वह माला थी जो किसी को जीवनभर के लिए भाग्यवान बना देने वाली थी-किन्तु किसको ? ____सभी राजा-महाराजा उद्ग्रीव होकर प्रतीक्षा करने लगे । सभी की एकटक दृष्टि राजकुमारी के चन्द्रमुख पर गड़ी हुई थी। उनके मन में आशा-निराशा का द्वंद्व चल रहा था। स्वयं को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए सभी राजा ऊँचे-नीचे हो रहे थे। कोई अपने सुनहरे वस्त्रों को ठीक कर रहा था, कोई अपने केश सँवार रहा था और कोई मूंछे मरोड़ रहा था।
केवल श्रीपाल मगन-मन शान्त बैठा हुआ था। उसने एक बार राजकुमारी को मंडप में प्रविष्ट होते हुए देखा
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