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१८२ पुण्यपुरुष
यात्री की बात सुनकर श्रीपाल हँस पड़ा और बोला
"क्यों भाई ! मुझ में ऐसी क्या विशेष बात तुमने देखी? इस देश में अनेकों राजा और राजकुमार हैं । एक से बढ़कर एक विद्वान और वीर भी उनमें होंगे ही । किसी न किसी का विवाह उस राजकुमारी से हो ही जायगा।"
"सो तो जो जिसके भाग्य में होगा, वही होगा महोदय !"-यात्री ने कुछ निराश होते हुए कहा-"किन्तु आप दोनों को देखने के बाद मेरा मन कहता है कि आप दोनों की जोड़ी यदि बन सकती तो ऐसी जोड़ी बनती कि बस । किन्तु मैं भूल गया, अब तो समय भी नहीं है।"
श्रीपाल ने पूछा- "समय ? समय क्यों नहीं है ?"
"राजा वज्रसेन ने राजकुमारी का स्वयंवार रचा है। इसके लिए शुभ दिन निश्चित किया है अषाढ़ शुक्ला पंचमी का। और यह पंचमी तो कल ही है । नगरी बहुत दूर है।" ___ यह जानने के बाद श्रीपाल ने उस यात्री से कुछ और इधर-उधर की बातें कीं। उसे पुरस्कार दिया और कुछ सोचता हुआ वह राजमहल को लौट आया।
जाने क्यों उसे रात में बहुत देर तक नींद नहीं आई। बार-बार दिन में मिले उस यात्री की और उसकी कही बातों की याद उसे आती रही। उसका मन अन्त में यही कह उठा कि उसे कंचनपुर के स्वयंवर में जाना तो चाहिए ही । कुछ कौतुक ही रहेगा। अनेक राजाओं और राजकुमारों से एक ही स्थान पर भेंट हो जायगी।
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