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कुण्डलपुर के नागरिकों ने श्रीपाल जैसा महापुरुष कभी देखा ही नहीं था । वह उसे एक देवता के समान मानने लगे थे । श्रीपाल भी यदा-कदा नगर भ्रमण के लिए निकाला करता था । इस प्रकार अपने निश्चय के विरुद्ध उसे कुण्डलपुरवासियों के स्नेह तथा आग्रह से विवश होकर कुछ अधिक समय ही वहाँ व्यतीत करना पड़ा । सज्जन पुरुष किसी के प्रेम को ठुकराया नहीं करते ।
एक दिन घूमते-घामते श्रीपाल को एक यात्री ने
बताया
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"यहाँ से लगभग तीन सौ योजन की दूरी पर कंचनपुर नामक नगरी है । वहाँ के राजा का नाम वज्रसेन तथा उसकी रानी का नाम कंचनमाला है । उनकी एक पुत्री, जिसका नाम त्रैलोक्यसुन्दरी है, वह अब विवाह के योग्य है तथा अपने नाम के अनुरूप वह त्रिलोकसुन्दरी ही है । श्रीमन् ! मैंने उस राजकुमारी को स्वयं देखा है और अब आपको देखकर मेरा मन कहता है कि वह राजकुमारी आपके ही योग्य है ।"
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