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१८.
पुण्यपुरुष
डाले रखना उचित नहीं समझा। रूप की तुलना में गुण की श्रेष्ठता सिद्ध हो ही चुकी थी। अतः वह क्षणमात्र में अपने वास्तविक परम शोभन रूप में आ गया। उसके इस देवोपम सच्चे रूप को देखकर और वास्तविकता को जान कर सभी लोगों के चित्त प्रसन्न हो गये। राजकुमारी के भाग्य पर जो विषाद की छाया उन लोगों के मन में घिरी हुई थी वह धुल गई और चारों ओर आनन्द का सागर लहराने लगा।
राजा मकरकेतु ने उठकर-नहीं, दौड़कर, श्रीपाल को अपने आलिंगन में बाँध लिया ।
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