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________________ १७६ पुण्यपुरुष पर पड़ती गई त्यों-त्यों हँसी की हिलोरें सभाभवन में उठने लगीं। किन्तु राजा के भय से, उनके सम्मान का विचार करके लोग मुक्त-रूप से हँस नहीं सके । बस, मुँह छिपा-छिपाकर मुस्कुराते रहे। राजकुमारी गुणसुन्दरी की दृष्टि भी श्रीपाल पर पड़ी। किन्तु विद्या के प्रभाव से श्रीपाल ने राजकुमारी को अपना वास्तविक रूप ही दिखाया-इतना भव्य, इतना सुन्दर, कि कामदेव भी उस रूप रूप को देखकर एक बार तो विस्मित रह जाय। राजकुमारी उस रूप को देखकर मुग्ध हो गई। टकटको बाँधकर कुछ क्षण वह अपलक दृष्टि से श्रीपाल को देखती ही रह गई। मन ही मन वह प्रार्थना भी करने लगी कि यही, बस यही युवक उसके योग्य है । काश, वह भी वीणावादन करे और ऐसी वीणा बजाये कि उस वीणा के नैसर्गिक राग जीवन-पर्यन्त उसकी आत्मा में बजते रहें-बजते ही रहें। एक तरफ उपस्थित जन-समुदाय श्रीपाल के प्रकट असुन्दर रूप को देख-देखकर हंस रहा था, अपनी हँसी रोक नहीं पा रहा था, और दूसरी ओर राजकुमारी उसके वास्तविक अनुपम रूप को देखकर अपनी सुध-बुध ही बिसार रही थी। विचित्र संयोग और स्थिति थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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