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४ पुण्यपुरुष लक्षण जब प्रकट हुए तो रानी कमलप्रभा और राजा सिंहरथ के हर्ष की कोई सीमा न रही। उन्हें ऐसा लगा जैसे त्रैलोक्य की सकल सम्पदा सहसा ही उन्हें प्राप्त हो गई हो । उनका सूना-सूना जीवन धन्य हो गया हो।
राजमहल के दास-दासियों और कर्मचारियों को जब यह सूचना कानोंकान मिली तो वे हर्ष से पागल ही हो गए। वे इधर-उधर दौड़ने-भागने और उड़ने-से लगे। एक-दूसरे से टकराते और प्रेम से गले मिलते । वे कहते
"सुना तुमने ? अरे सुना कुछ तुमने ? महारानी जी........" ... "सुन लिया, सुन लिया, परे हट ! मुझे बहुत काम हैं। रास्ता तो छोड़ भले आदमी, महारानी जी........."
सबने सुन लिया था और सब पागल-से हो गये थे। किसी को कुछ पता नहीं था कि वह कहाँ जा रहा है और उसे क्या काम है। किन्तु दौड़े-भागे सभी फिर रहे थे। हर्ष-विभोर होकर पुकारते जाते थे-सुना तुमने ? अरे भाई रास्ता तो छोड़ो। महारानी गर्भवती हुई हैं ? वे अब शीघ्र ही एक सुन्दर-सुन्दर, प्यारे-प्यारे राजकुमार को जन्म देने वाली हैं। हाँ, हमारा राजकुमार आने वाला है । हटो-हटो, मुझे बहुत काम हैं।
यह प्रसन्नता का पारावार राजमहल तक ही सीमित कैसे रहता? देखते-देखते सारी चम्पानगरी में यह शुभ समाचार फैल गया और नगरी का प्रत्येक निवासी अपने
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