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पुण्यपुरुष ३ रो उठती और अपने पति की गोद में सिर रखकर रुधते जाते कण्ठ से कहती___ "नाथ ! मैं अभागिन हैं। अपने साथ-साथ मैंने आपको भी मानव-जीवन के श्रेष्ठतम सुख से वंचित कर रखा है। जाने किस जन्म के किस दुष्कर्म का अभिशाप हम दोनों को घेरकर बैठा है कि सभी प्रकार के प्रयत्न करके हम हार गये, किन्तु आज तक सन्तान का मुख न देख सके।"
राजा सिंहरथ तब रानी के सिर को धीरे-धीरे सहलाते और उसे धैर्य बँधाने का यत्न करते हुए कहते___ "कमल ! शान्त हो जाओ। तुमसे मुझे कोई शिकायत नहीं है । यह तो हमारे कर्मों का ही फल है। किन्तु मुझे विश्वास है कि एक न एक दिन हमारे शुभकर्मों का उदय होगा, अवश्य होगा, और हम सन्तान का हँसता हुआ मुख अवश्य देखेंगे।"
रानी कमलप्रभा धीरे-धीरे शान्त हो जाती और बझे हए मन में भी आशा और विश्वास की कोई किरण सहेजे हुए अपने दैनिक कार्यों में लग जाती।
यह क्रम चलता रहता। . और उस क्रम में एक दिन सहसा ही एक शुभ परिवर्तन आया।
पुण्योदय से रानी कमलप्रभा गर्भवती हुई। गर्भ के
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