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२ पुण्यपुरुष तब सभी को चले जाना है चुपचाप; किन्तु जाने के बाद कौन लेगा हमारा नाम ?—यह चिन्ता किस दम्पत्ति को नहीं सताती ?
चम्पानगरी के राजा सिंहरथ और रानी कमलप्रभा के पास सभी कुछ था। पुण्यकर्मों के प्रभाव से उन्हें किसी वस्तु का अभाव नहीं था, धन-वैभव की सरिताएँ बहती थीं, उनके एक इंगित मात्र पर सहस्रों लोग अपने प्राण न्यौछावर करने के लिए प्रतिक्षण प्रस्तुत रहते थे। किन्तु, बस, एक ही अभाव ऐसा था कि राजा-रानी को इतना सब कुछ होते हुए भी संसार सूना-सूना लगता था।
राजा-रानी को अपनी प्यारी-प्यारी, तोतली बोली में 'पिताजी' और 'माँ' कहने वाली कोई सन्तान नहीं थी। न कोई पुत्र और न कोई पुत्री।
सन्तान के अभाव का यह गहन दुख राजा सिंहरथ और रानी कमलप्रभा के हृदय में गहरा बसा हुआ था और धीरे-धीरे उनके शरीर को सुखाए जा रहा था।
राजा अपनी प्रिय रानी के मुरझाए हुए मुख-कमल को देखते तो उनका हृदय टूक-टूक हो जाया करता। कभी-कभी वे साहस करके कहते
"रानी ! तुम इतनी दुखी क्यों होती हो? धीरज धारण करो। प्रभु की कृपा हम पर कभी न कभी अवश्य होगी। तुम्हारी गोद............."
इतना सुनते ही वह पुत्र-विहीना नारी फफक-फफककर
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