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________________ पुण्यपुरुष १६६ कुण्डलपुर में तथा आस-पास दिन-रात वीणा की झंकार ही सुनाई देती रहती है । जिसे देखो वही वीणा-वादन का अभ्यास करता दिखाई देता है। प्रत्येक वीणावादक यही सोचता है कि किसी प्रकार राजकुमारी का विवाह उसके साथ हो जाय। जिसके सिर पर देखो, बस यही धुन सवार है।" ___ इतना कहकर सरदार चुप हो गया। श्रीपाल ने कुछ क्षण विचार किया और फिर उस बनजारे को पर्याप्त पुरस्कार देकर विदा कर दिया। घूमता-फिरता श्रीपाल राजमहल में लौट आया। किन्तु विश्राम के समय भी उसके मन में कुण्डलपुर की उस विचित्र राजकुमारी का ही विचार उठ रहा था। उसने निश्चय किया-कुण्डलपुर जाना चाहिए, और ऐसी गुणवती राजकुमारी को ब्याह कर लाना ही चाहिए। किन्तु वीणावादन ? उसने तो अब तक कभी वीणावादन का अभ्यास किया ही नहीं। तब इस समस्या का समाधान कैसे हो? विचार करते-करते उसे नवपद के माहात्म्य तथा उसकी सिद्धि का ध्यान आया। उसने सोचा कि सिद्धचक्र की आराधना और उसके प्रभाव से तो सभी दुष्कर कार्य सहज हो जाते हैं, असंभव भी संभव बन जाता है। यह विचार आते ही उसने सिद्धचक्र की आराधना आरम्भ कर दी। शीघ्र ही विमलेश्वर नामक एक देव प्रकट हुए। वे सौन्दर्य लोक के निवासी थे। सिद्धचक्र के भधिष्ठाता थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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