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________________ १६८ पुण्यपुरुष रहते हैं । सन्त-साधुओं की बराबरी तो हम कैसे कर सकते हैं ? हम तो अपना और अपने परिवार का पेट-पालन करने के लिए ही इधर-उधर रखड़ते हैं, जबकि साधु पुरुष तो लोक कल्याण के लिए विचरण करते हैं । वे लोग जहाँ भी जाते हैं, वहाँ का वातावरण पवित्र हो जाता है । वे लोग पूज्य हैं । हम तो गरीब बनजारे हैं।" ___"अरे भाई ! धनवान अथवा निर्धन होना इतने महत्त्व की बात नहीं है। मनुष्य को अपने गुणों और चरित्र को ही सम्पन्न करना चाहिए। अच्छा, तो तुम बताओ कि तुमने क्या आश्चर्य की बात देखी ?" श्रीपाल ने कहा। तब उस बनजारे सरदार ने बताना आरम्भ किया "श्रीमान् ! हम लोग अभी कुण्डलपुर से आ रहे हैं। यह नगरी यहाँ से कोई तीन-चार सौ कोस की दूरी पर होगी। वहाँ के राजा का नाम मकरकेतु तथा उनकी रानी का नाम कर्पूरतिलका है। उनके दो राजकुमार और एक राजकुमारी है। राजकुमारी का नाम है गुणसुन्दरी। श्रीमान् ! अब मैं आपसे क्या बताऊँ कि वह राजकुमारी कैसी है । बस, यही समझ लीजिए कि वह यथानाम तथागुण ही है। यह गुणवान भी है और सुन्दरी है । वीणा तो वह इतनी मधुर बजाती है कि सुनने वाले सुनते ही रह जायें। उस राजकुमारी ने यह प्रतिज्ञा कर रखी है कि जो भी व्यक्ति उससे अधिक मधुर वीणा बजाएगा वही उसका पति होगा। राजकुमारी की इस प्रतिज्ञा के कारण, श्रीमान ! सारे Jain Education International For Private & Personal Use Only: www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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