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________________ उस सुन्दर, श्यामल कोंकण प्रदेश में श्वसुर वसुपाल तथा तीनों रानियों की स्नेह छाया में श्रीपाल के बहुत दिन सुखपूर्वक व्यतीत हो गये। किन्तु श्रीपाल को अपनी माता तथा मैनासुन्दरी से बिछड़े अब बहुत समय हो गया था। उसका मन अब अपने देश को लौट जाने का होने लगा था। उसी समय एक दिन वन-भ्रमण करते हुए श्रीपाल को बनजारों का एक दल दिखाई पड़ा। सहज रूप से श्रीपाल ने बनजारों के सरदार से पूछ लिया "भाई ! आप लोग तो साधुओं की तरह निरन्तर भ्रमण करते रहते हैं। अनेक देश आपने देखे होंगे। आपको संसार और उसकी विचित्रता का बड़ा अनुभव होगा। अतः कृपया बताइये कि क्या आपने कहीं कोई अद्भुत बात देखी है ?" सरदार ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया'हां, श्रीमान् ! हम बनजारे हैं, इधर-उधर भटकते ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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