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१६६ पुण्यपुरुष आज्ञा लेकर धवल सेठ का अन्तिम संस्कार विधिवत् सम्पन्न किया। उसके पाँच सौ यान तथा उनका सारा माल उसने धवल सेठ के उन तीनों मित्रों में बाँट दिया जो उसे सदैव सच्ची और अच्छी सलाह दिया करते थे ।
इस प्रकार धवल सेठ के अनैतिक जीवन के नाटक का पटाक्षेप हो गया।
श्रीपाल की जीवन-यात्रा का भी एक पड़ाव पीछे छूट गया।
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