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पुण्यपुरुष
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लगाकर उसने अपने दूसरे साथियों को बुलाया और धवल सेठ के शव को रात्रिभर के लिए एक कोठरी में रख दिया ।
प्रातःकाल होने पर तो इस घटना ने सारी नगरी में तहलका-सा मचा दिया । लोग टोली बाँध-बाँधकर नीच धवल सेठ की अन्तिम गति को देखने आने लगे। यह क्रम बहुत देर तक चलता रहा और लोग उस पापी को धिक्कारते रहे। __ एक कहता- "इस नीच को नगरी से बाहर चीलकौवों का आहार बनने के लिए फेंक देना चाहिए।
दूसरा कहता- "इसके पापी शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके कुत्तों को खिला देना चाहिए।"
तीसरा कहता-"इसका मुंह काला करके, गधे पर लादकर उसे श्मशान में पटक देना चाहिए ताकि यह भूत बनकर भव-भव तक भटकता रहे।"
जितने मुख उतनो ही बातें हो रही थीं । एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जिसे उस पापी धवल सेठ से तनिक भी सहानुभूति हो ।
किन्तु श्रीपाल तो महानुभाव था। वह जानता था कि व्यक्ति स्वयं में पापी अथवा बुरा नहीं होता। संस्कार, परिस्थितियाँ, संयोग ही उसे भिन्न-भिन्न मार्गों पर धकेल देते हैं । उसका अज्ञान ही उसे उल्टे रास्तों पर चलाता है।
भतः श्रीपाल ने उदारता प्रदर्शित करते हुए राजा से
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