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१६२ पुग्यपुरुष कार के साथ एकमेक हो जाये और कोई उसे देख न पाये।
चाल उसकी बिल्ली जैसी हो गई थी। वह चौकन्ना चलता चला जाता था, किन्तु शब्द तनिक भी नहीं होता था।
यद्यपि उसका हृदय धड़क रहा था, उसे भी लग रहा था कि यदि पकड़ा गया तो क्या होगा। किन्तु वैर और लोभ का प्रभाव उसके हृदय में इतना तीव्र था कि वह आगे बढ़ता ही गया, अपनी जान पर खेल जाने का दृढ़ निश्चय करके।
संयोगवश वह जब तक श्रीपाल के प्रकोष्ठ के नीचे तक पहुँचा तब तक मार्ग में उसे किसी ने नहीं टोका, किसी पहरेदार या नागरिक से उसकी भेंट नहीं हुई। किन्तु उसने देखा कि श्रीपाल के महल के नीचे एक सशस्त्र पहरेदार चारों ओर सजग दृष्टि से देखता हुआ घूम रहा था। वास्तविक संकट की घड़ी तो अब आई थी। यदि प्रहरी की दृष्टि में धवल सेठ आ गया तो उसी क्षण उसकी मृत्यु निश्चित थी।
धवल सेठ एक सघन वृक्ष की ओट में, अंधेरे में, चीते की तरह दुबक कर बैठ गया और सांस रोककर अवसर की तलाश करने लगा।
उसने उस प्रहरी की गति-विधि का अध्ययन करना आरम्भ किया-उस प्रहरी को उस महल का एक चक्कर
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