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पुण्यपुरुष १६३ लगाकर आने में कम से कम पांच-दस मिनट तो लगते ही थे । धवल सेठ ने सोचा-यह प्रहरी एक बार जब महल के पीछे की ओर जायेगा तब वह शीघ्रता से गोह को छत पर फेंक देगा, गोह वहीं चिपक जायगी और वह रस्सी को अंधेरे में दीवार के सहारे लटकने देगा। इतने में ही पहरेदार लौटेगा, तब तक वह पुनः उसी वृक्ष की आड़ में छिपा रहेगा और जब पहरेदार फिर से चक्कर लगाता हुआ दूसरी तरफ जायगा तब वह जल्दी-जल्दी रस्सी पकड़कर उस पर चढ़कर छत पर पहुँच जायगा । बस, फिर तो गढ़ जीत ही लिया समझो। एक ही वार में वह अपनी कमर में लटकती हई तीक्ष्ण रिका से श्रीपाल का पेट फाड़कर अन्धकार में विलीन हो जायगा। किसी को पता भी नहीं चलेगा कि यह हत्या किसने और किस प्रकार कर दी।
धवल सेठ तो उस समय तक समुद्रतट छोड़कर अथाह सागर में दूर चला गया होगा।
यह थी धवल सेठ की योजना।
इस योजना का पहला चरण सफल हो भी गया। धवल सेठ ने गोह को छत पर चिपका दिया और वह पहरेदार के दूसरे चक्कर के समय तेजी से मजबूत रेशमी डोर के सहारे छत की ओर सरकने लगा।
किन्तु मनुष्य लाख प्रयत्न करे, विधि का लेख तो अटल ही रहता है। दूसरों के लिए खाई खोदने वाला व्यक्ति कभी न कभी स्वयं ही उस खाई में जा गिरता है।
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