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१५८ पुग्यपुरुष हिता पत्नियों को फुसलाकर उनका शीलभंग करने का भी घोर पाप करने का यत्न किया था।
अतः राजा ने उसी क्षण आदेश दिया
"इस नीच धवलसेठ की सारी सम्पत्ति जब्त कर ली जाय। उसमें से एक लाख स्वर्ण-मद्राएं इन गरीब भाँड़ों को दे दी जायं और इस पापी सेठ को तुरन्त शूली पर चढ़ा दिया जाय।"
राजा का यह आदेश सुनकर धवल सेठ भूमि पर साष्टांग गिरकर गिड़गिड़ाने लगा। दया की भीख मांगने लगा। किन्तु राजा ने उस दुष्ट की एक न सुनी। सैनिक उसे घसीटकर वधस्थल की ओर ले जाने लगे।
उसी समय श्रीपाल ने अपना मख खोला । जैसे कहीं से अचानक अमृत की वर्षा होने लगी हो, ऐसे मधुर वचन उसने कहे
"महाराज वसुपाल ! मैं आपसे एक प्रार्थना करना चाहता हूँ। यह धवल सेठ अज्ञानी है । अपने अज्ञान में ही इसने ये सब कुकर्म किये हैं। मुझे आशा है कि अब इसे अपने किये का पश्चात्ताप अवश्य हो रहा होगा और भविष्य में यह ऐसा कोई पापकर्म नहीं करेगा। अतः आप कृपया इसे इस बार क्षमा कर दीजिये।" ।
राजा सहित सारी सभा श्रीपाल की महानता से विस्मित होकर उसे एकटक देखती ही रह गई। सभी सोच रहे थे कि क्या इस संसार में ऐसे भी महान, इतने
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