SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुण्यपुरुष १५७ कि इस धवल सेठ को बन्दी बना लिया जाय। सैनिकों ने राजा के आदेश का तत्क्षण पालन किया । उसके बाद उस लालची और धूर्त्त भण्डराज की बारी आई । राजा ने उससे कहा - "सच-सच बोल भण्डराज के बच्चे ! तूने यह नाटक किसलिए और किसके कहने से किया ?" बेचारा गरीब भंडराज बेहद घबरा गया था । उसके मुँह से अब बोल भी बड़ी कठिनाई से फूट रहे थे । जैसेतैसे उसने उत्तर दिया "महाराज ! आप दयालु हैं, ज्ञानी हैं । हम पर दया कीजिए। हम तो गरीब आदमी हैं। रोज कुआ खोदते हैं और रोज पानी पीते हैं । हम लोग अपने खेल दिखाकर आपको प्रसन्न करके आपसे कुछ पुरस्कार प्राप्त करने की इच्छा से यहाँ आये थे। रास्ते में ये धवल सेठ हमें मिले । इन्हीं ने हमें यह कुबुद्धि दी कि हम झूठा नाटक रचकर श्रीपाल महाराज को अपना सम्बन्धी सिद्ध करें । इसके बदले में उन्होंने हमें एक लाख स्वर्णमुद्राएँ देने का वचन दिया था । बस माई-बाप ! सच्ची बात तो यही है । अब आगे आप मालिक हैं । मारें चाहे तारें ।" सब बात जान लेने पर को आया । भरी सभा में मानित करने का प्रयत्न उसके प्राण लेने का Jain Education International राजा को धवल सेठ पर बहुत उसने राज-जामाता को अपकिया था । समुद्र में धकेलकर षड्यन्त्र रचा था और उसकी विवा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy