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________________ १५६ पुण्यपुरुष जब ये दोनों रानियाँ राजसभा में उपस्थित हुईं तो वहाँ अपने पति श्रीपाल को देखकर वे अत्यन्त प्रसन्न हो गईं। सबसे पहले उन्होंने जाकर अपने पतिदेव के चरण छुए और कहा___ "स्वामी ! आपको सकुशल देखकर हमारे प्राण लौट आये हैं। भगवान ने हमारी प्रार्थना सुन ली। ईश्वर बड़ा कृपालु है।" इसके बाद राजा वसुपाल ने जब उन रानियों से सारा सच्चा हाल बताने को कहा तब उन्होंने जो कुछ भी घटित हुआ था वह सब कुछ स्पष्ट रूप से बता दिया। किस प्रकार धवल सेठ ने उन्हें फुसलाने का प्रयत्न किया, यह भी उन्होंने बताया। श्रीपाल का पूर्ण परिचय भी दिया। अब तो सारी बात साफ हो गई थी। सभी लोग यह भी समझ गये थे कि इस पापी धवल सेठ ने ही श्रीपाल को धोखे से समुद्र में धकेल दिया था और वे अपने पुण्यों के प्रभाव से ही सुरक्षित किनारे पर आ लगे थे। जब रानियाँ यह घटना राजा वसुपाल को बता रही थीं, तब धवल सेठ अपनी सारी पोल खुल जाने तथा राजा के द्वारा कठोर दण्ड दिये जाने के भय से अधमरा-सा हो रहा था और लोगों की दृष्टि बचाकर धीरे-धीरे सभाभवन से बाहर खिसकने का उपक्रम कर रहा था। किन्तु राजा की दृष्टि तीव्र थी। उसने सैनिकों को आदेश दिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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