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________________ १५२ पुण्यपुरुष इसी प्रकार कोई उसे अपना भतीजा बताने लगा और उसके मिल जाने पर हर्ष के आँसू बहाने लगा। राजा वसुपाल की राजसभा में हंगामा-सा मच गया। राजा पहले तो आश्चर्य में पड़ा, फिर धीरे-धीरे जब उसे यह विश्वास होने लगा कि यह अनजान युवक श्रीपाल सच, मुच ही भाँड़ है, इतनी नीच जाति का है तो उसे एक ओर तो यह दुख हुआ कि उसने बिना पूर्ण विचार और देखभाल किये अपनी प्यारी बेटी का विवाह उसके क्यों कर दिया और दूसरी ओर उसे श्रीपाल पर क्रोध आया कि उसने सत्य बात प्रकट क्यों न की? उसे धोखा क्यों दिया ? जिस समय यह तमाशा हो रहा था उस समय राजसभा के एक दूर कोने में खड़ा धवल सेठ मन ही मन प्रसन्न हो रहा था कि अब राजा श्रीपाल को अवश्य मृत्युदण्ड दे देगा और उसके सारे संकट दूर हो जायेंगे। श्रीपाल की सम्पत्ति भी उसे मिल जायगी तथा उसकी युवती पत्नियाँ भी उसे प्राप्त हो ही जायेंगी। ___अन्त में राजा से रहा न गया। उसका चेहरा क्रोध और परिताप से लाल हो रहा था । वह क्रोध से बोला__ "भंडराज ! तुम सब लोग एक तरफ खड़े हो जाओ। और अब बोलो कि तुम लोग यह सब क्या बकवास कर रहे हो ? ये महाराज श्रीपाल हमारे दामाद हैं । वीर क्षत्रिय हैं । तुम लोग यह क्या पागलपन कर रहे हो? क्या तुम लोगों की मौत सिर पर नाच रही है ? सच-सच बोलो, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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