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पुण्यपुरुष
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मंडली में स्त्रियाँ और बालक भी थे। वे भी सभी बड़े चपल और चतुर थे।
इसी प्रकार कोई एक खेल चल रहा था कि अचानक उस मंडली का सरदार वह भंडराज अपनी नाट्य-क्रिया के बीच में स्तम्भित सा होकर ठहर गया और श्रीपाल को आँख गड़ा-गड़ाकर देखने लगा।
कुछ पल वह इसी प्रकार श्रीपाल को देखता रहा। सभा में उपस्थित सभी लोगों को आश्चर्य हुआ कि यह भंडराज अचानक खेल दिखाते हुए रुक क्यों गया और वह इस प्रकार श्रीपाल को आँख गड़ा-गड़ाकर क्यों देख रहा है। कोई कुछ समझ नहीं सका। इतने में ही वह भंडराज दौड़कर श्रीपाल की ओर गया और उससे चिपट गया । कहने लगा__ "अरे बेटा ! अरे मेरे प्यारे बेटे ! तू यहाँ छिपा बैठा है ? हाय, हम तो तुझे ढूंढ़ते-ढूंढ़ते देश-विदेश में मारे-मारे फिरते रहे । पैरों में छाले पड़ गये, अनेक बार भूख-प्यास से अधमरे भी हो गये और तू यहाँ सुख से छिपा बैठा है। देख तो सही, यह तेरी माता तेरे वियोग में कैसी अधमरी, कितनी बूढ़ी हो गई है, अरे मेरे प्यारे बेटे........।"
षड्यन्त्र तो पहले ही रच लिया गया था। भंडराज की पत्नी भी अब दौड़कर श्रीपाल को अपना 'बेटा-बेटा' कहकर असुवा ढारने लगी।
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